मुज़फ्फरनगर ।
प्रदेश की योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के विकास और रोजगार के लिए वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट की योजना के अंतर्गत मुज़फ्फरनगर को गुड़ के लिए चुना है। कभी मुज़फ़्फ़रनगर की देश दुनिया में पहचान ही गुड़ से होती थी। इस क्षेत्र में गुड़ का उत्पादन कितना पुराना है यह तो कहना मुश्किल है पर कुछ जानकर कहते है कि महाभारत काल में भी यह क्षेत्र गुड़ के लिए प्रसिद्ध था। मुज़फ्फरनगर मंडी के अस्तित्व में आने से पहिले कांधला गुड़ उत्पादन और व्यापार का बड़ा केंद्र था। मुज़फ्फरनगर के गुड़ की खुशबु भारत ही नहीं पड़ोसी देशो के साथ साथ पुरे एशिया में फैली थी। जापान हमारे गुड़ का बड़ा आयातक रहा है। पर तेजी से फैले उद्योगीकरण,और नफे की बढ़ती भूख ने गुड़ के स्वाद को विषैला बना दिया। देश में खाने पीने की चीजों में नया दौर आया। अब भोजन में स्वाद की जगह रूप ने लेली। वहीं से गुड़ उद्योग और व्यापार की उलटी गिनती शुरू हुई। गुड़ का स्वाभाविक रंग लाल है पर इसे पीला सफेद व बेहद चमकदार बनाने के चलते गन्ने के रस की सफाई में अंधाधुंध अकार्बनिक रसायनो का इस्तेमाल किया गया। यहाँ तक की गुड़ खाना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो गया। गुड़ की गुण वत्ता के लिए तीन मानक प्रचलन में है। तीनो में ही सल्फर डाई आक्साइड पी पी एम् ५० से कम होना चाहिए पर मंडी में आने वाले गुड़ में यह १८० से २७० तक है। यह मानवीय स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इसके अतिरिक्त कुछ समाजविरोधी तत्व गुड़ का वजन बढ़ाने के लिए सॉफ्ट स्टोन पाउडर ,चाकपाऊडर,लिक्विड अमोनिया न जाने कैसे कैसे जहरीले कैमिकल का इस्तेमाल शुरू किया। परिणाम स्वरूप गुड़ की खपत मानवीय भोजन में बेहद कम हो गयी। अब इसका अधिकतम उपयोग अवैध शराब बनाने में होने लगा। मंडी में गुड़ के भाव २३ से २५ रुपये किलो रह गए गुड़ का उत्पादन लाभकारी नहीं रहा। वही अभी भी सिमित मात्रा में कुछ गुड़ उत्पादक ऑर्गेनिक गुड़ का उत्पादन कर रहे है बाजार में यह गुड़ ८० रुपए से १५० रूपए किलो बिक रहा है। स्थिति स्पष्ट है की यदि गुड़ की गुणवत्ता को लेकर ग्राहक को विश्वास हो जाय तो वह उत्पादक को कोई भी दाम दे सकता है। सरकार को चाहिए गुड़ की क्वालिटी मानवीय जीवन के स्वास्थ्य अनुरूप बनाने के लिए नई रेसिपी का ईजाद करे ,गुड़ उत्पादकों को इसका प्रशिक्षण दे निसंदेह मुज़फ्फरनगर की गुड़ की महक दुनिया में फिर से महक सकती है।
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