सपा और बसपा मिल कर लड़ेंगी लोकसभा चुनाव
विपक्षी दलों के गठजोड़ को गुप्त वार्ता
नयी दिल्ली। उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीते बाइस बरस से एक-दूसरे की धुर विरोधी रहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा का मजबूती से सामना करने के लिए चुनावी गठजोड़ बनाने की दिशा में अंदरखाने कोशिशों में लग चुकीं हैं। हालांकि अभी तक किसी भी चुनावी गठजोड़ को लेकर दोनों दलों के मुखिया चुप्पी ही साधे हैं। सबसे बड़ी दिक्कत सपा और बसपा के बीच अहं के टकराव को लेकर है। वार्ता की शुरूआत कौन करें, यह बहुत कठिन है। बीते लोकसभा चुनाव और उसके बाद पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में अलग-अलग लड़ कर जिस तरह सपा, बसपा और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ, उससे इन दलों को यह समझ में आ चुका है कि गठबंधन के बिना चुनाव लड़ने से अपना अस्तित्व बचा पाना कठिन ही है। यह भी तय है कि बसपा को बाहर रख कर सपा और सपा को बाहर रख कर बसपा भी यदि कोई गठबंधन बनाती है तो वह भी निर्णायक चुनौती नहीं दे पाएगा। विधानसभा चुनाव में बसपा को बाहर रख कर सपा ने कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ा था पर नतीजा ढांक के तीन पात रहा था। यदि इस गठबंधन में बसपा भी शामिल होती तो नतीजा कुछ और ही होता। बहरहाल दोनों दल इस बात को बखूबी मानते हैं कि उन्हें अपना वजूद बचाने को हर हाल में गठबंधन करना ही होगा।
सपा-बसपा के रिश्तों में बाइस बरस से जमी बर्फ पिधलने लगी है। सूत्रों के अनुसार बजट सत्र के दौरान सपा महासचिव रामगोपाल यादव और बसपा महासचिव सतीश मिश्रा के बीच अनौपचारिक चर्चा भी हुई। हालांकि इस बारे में दोनों ही नेताओं ने फिलहाल मीडिया से कोई चर्चा नहीं की है। पता चला है कि विपक्षी गठबंधन में सपा और बसपा मुख्य साझेदार होंगी। इनके बीच पूरी तरह सहमति बन जाने के बाद गठबंधन में महागठबंधन का आकार दिया जाएगा। इस तरह बाद में सपा-बसपा की संयुक्त छतरी के नीचे कांग्रेस और रालोद को भी कुछ सीटें देकर शामिल कर लिया जाएगा। यदि रामगोपाल यादव और सतीश मिश्र की बातचीत कुछ आगे बढ़ी तो बाद में गठबंधन को अंतिम रूप देने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच भी सीधी बातचीत हो सकती है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सब कुछ बहुत आसान नहीं है। गठबंधन में सीटों के बंटवारे का पेंच सुलझाना सबसे कठिन होगा। दूसरी बात फूलपुर और गोरखपुर सीट के संसदीय उपचुनाव में जब सपा और कांग्रेस मिल कर चुनाव नहीं लड़ पाए तो कैसे उम्मीद की जाए कि वह लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर लेंगे। एक बात यह भी है कि दोनों संसदीय सीटों के नतीजे भी विपक्षी गठबंधन की भूमिका बनाने में मददगार होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि गोरखपुर और फूलपुर में बसपा का दलित वोट बैंक कांग्रेस या सपा में से किसके साथ जाता है? गौरतलब है कि दोनों सीटों पर बसपा ने अपने प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारे हैं। बसपा शुरूआत से ही उपचुनाव नहीं लड़ती है। बहरहाल उपचुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठजोड़ की कवायद शुरू हो जाएगी।
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