नई दिल्ली।
तिरछी नजरों के तीखे बाण और कजरारे नैनों की प्रेम की भाषा तो सदियों पहले इजाद हो गई थी अब इन आंखों से आप अपना हालचाल और समस्याओं का भी इजहार कर सकेंगे। एक एड एजेंसी ने आंखों की भाषा इजाद की है, जिसमें पलकें झपका कर आप बता सकते हैं कि कैसे हैं।
दक्षिण भारत की अभिनेत्री प्रिया प्रकाश के तीखे नैनों का कमाल हाल में वायरल हुए उनकी फिल्म के एक वीडियो से देश और दुनिया ने देखा। लेकिन आंखें सिर्फ प्यार का ही इजहार नहीं करतीं और भी बहुत कुछ कहती हैं, बस उसे समझने की जरूरत है। आंखों की भाषा ऐसे मरीजों के लिए काफी मददगार है, जो स्नायु तंत्र से जुड़ी कई अन्य बीमारियों और मांसपेशियों के कमजोर होने से अपना शरीर हिला नहीं सकते हैं और अंगों के परिचालन पर कोई नियंत्रण नहीं रहता। जरा कल्पना कीजिए कि लाचारी के उस आलम में मरीज को अगर यह कहना है कि उसे बेचैनी हो रही है या उसे डाक्टर की जरूरत है तो वह कैसे बता पाएगा, लेकिन अब आंखों की एक जुंबिश से वह अपनी परेशानी अपने परिवार के सदस्यों तक पहुंचा पाएगा और उसकी समस्या का तत्काल समाधान हो जाएगा। खतरे से लेकर किसी जरूरत तक के तमाम संकेत बस आंख के एक इशारे से सामने वाले तक पहुंच जाएंगे। आंखें उसकी भाषा बन सकती हैं। पलकें झपका कर अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने की एक अनूठी भाषा तैयार की गई है और इसे नाम दिया गया है ब्लिंक टू स्पीक।
विज्ञापन एजेंसी टीबीडब्ल्यूए ने आंखों की भाषा की इस परिकल्पना को अमली जामा पहनाया और देश में मोटर न्यूरोन डिजीज (एमएनडी) तथा एमियोट्रोफिक लेटरल सेरोसिस (एएलएस) के मरीजों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन आशा एक होप के साथ मिलकर इस गाइड को करीब एक माह पहले जारी किया। 50 इशारों के साथ आंखों की एक पूरी भाषा बना डाली। ब्लिंक टू स्पीक भाषा एक बार समझ में आने लगे तो महंगे सहायक उपकरणों की जरूरत खत्म हो जाती है। यह गाईड इंटरनेट पर उपलब्ध है, जिसे मुफ्त डाउनलोड किया जा सकता है। मरीज कुछ ही दिन में इस किताब में दिए गए आंखों को इशारों को समझ लेते हैं और वह खामोशी से बस पलकों की जुंबिश से अपनी बात समझा पाते हैं। मरीज से बात करने के दौरान आपने कुछ पूछा और मरीज एक बार पलकें झपकाए तो समझिए कि उसका जवाब हां है, दो बार पलकें झपकें तो मतलब है नहीं। आपने हाल चाल पूछा और मरीज ने तीन बार पलकें झपकाईं तो समझिए सब ठीक है। एक बार बाएं देखकर दाएं देखा और फिर एक बार पलकें झपकाईं तो मरीज को ठीक नहीं लग रहा है। एक बार पलक झपका कर दाईं और देखा तो मरीज को डाक्टर की जरूरत है।
इसी तरह आंखों के जरिए मरीज आई लव यू, थैंक यू, आई वांट ए हग और आई वांट टू टॉक जैसी अपनी तमाम भावनाएं तीमारदार तक पहुंचा देता है। इस भाषा के जरिए अपनी बात बता देने का एहसास जहां मरीज को खुशी और उम्मीद देता है वहीं परिवार के सदस्यों को यह संतोष रहता है कि वह मरीज की तमाम जरूरतें पूरी करके उसे बीमारी से लडऩे और अपने बेबस जीवन को कुछ बेहतर कर पाने का मौका दे रहे हैं।
फोटो-साभार-puridunia.com
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