नई दिल्ली। कोरोना वायरस को काबू करने के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन के दौरान गंगा और यमुना की जल गुणवत्ता में सुधार संबंधी रिपोर्टों का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को निर्देश दिया है कि वह नदियों एवं अन्य जलाशयों समेत पर्यावरण में औद्योगिक एवं अपशिष्ट जल से होने वाले प्रदूषण में आई कमी का अध्ययन और विश्लेषण करे। एनजीटी ने इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट मांगते हुए निर्देश दिया कि औद्योगिक और अन्य गतिविधियां पुन: आरंभ होने के बाद यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पर्यावरण संबंधी सभी नियमों का पालन किया जाए। एनजीटी ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भी यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जलाशयों में प्रवेश करने वाले अपशिष्ट जल का शत-प्रतिशत उपचार किया जाए और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस प्रकार की रिपोर्ट मिली हैं कि लॉकडाउन के दौरान नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सीपीसीबी को इसके कारणों का अध्ययन एवं विश्लेषण करना चाहिए और अधिकरण को रिपोर्ट सौंपनी चाहिए। पीठ ने कहा कि यदि गतिविधियां चालू होती हैं, तो कानून और मानकों का पूरा पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। प्राप्त जानकारी के अनुसार जिन इलाके में औद्योगिक गतिविधियां कम हुई हैं, वहां गंगा और यमुना की जल गुणवत्ता में सुधार हुआ है। पीठ ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि अपशिष्ट जल उपचार की योजनाओं का पालन किया जाए और उनके विभाग इस उपचारित अपशिष्ट जल का प्रयोग करें। पीठ ने कहा कि अपशिष्ट जल के उपचार और उसके प्रयोग की योजनाओं का समयसीमा में सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। एनजीटी ने कहा कि सीपीसीबी 15 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट जमा कर सकता है और वह कार्य योजनाओं को पेश करने एवं उनके क्रियान्वयन की स्थिति के बारे में 31 अप्रैल तक ई-मेल के जरिए जानकारी दे। पीठ ने पर्यावरण सुरक्षा समिति एवं अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों की स्थापना एवं संचालन से जुड़ी अन्य संस्थाओं की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिए।

लॉकडाउन में गंगा, यमुना की जल गुणवत्ता में सुधार, एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड से मांगी स्टेटस रिपोर्ट
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