नई दिल्ली। केंद्र सरकार के साथ आंदोलनकारी किसानों की लगातार पांच वार्ताए विफल होने के बाद केंद्र सरकार किसानों के आंदोलन पर आक्रमक रूख अपना सकती है। ऐसे संकेत सरकार की ओर से मिल भी रहे हैं। ऐसा मंगलवार को भाकियू के किसान नेता राकेश टिकैत ने संकेत देते हुए कहा कि केंद्र सरकार, पांच दौर की बातचीत के बाद बौखला गई है। अब ऐसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं कि जिससे किसानों का आंदोलन उग्र हो जाए और सरकार को बल प्रयोग करने का मौका मिल सके। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वरिष्ठ सदस्य अविक साहा भी यह बात मानते हैं कि जिस तरह के सरकारी बयान आ रहे हैं, वह आंदोलन के लिए शुभ लक्षण नहीं है। सरकार ने किसान संगठनों में फूट डालने की हर संभव कोशिश की है। अब ऐसे लोगों को किसान बनाकर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मिलवाया जा रहा है, जो पहले के किसी आंदोलन में दिखाई नहीं पड़े। एक तरफ सरकार कहती है कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं तो दूसरी ओर अपने मनचाहे संगठनों से खुद के पक्ष में बयान दिलाकर किसानों को गुमराह कर रही है।
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि केंद्र सरकार का दोहरा चरित्र सामने आ गया है। एक तरफ तो सरकार कहती है कि बातचीत जारी है। दूसरी ओर भाजपा ने मंत्री किसान आंदोलन को गलत ठहरा रहे हैं। भाजपा के छोटे बड़े नेता गांवों में पहुंच कर तीनों कानूनों को जायज बताने में लगे हैं। वे किसानों से कह रहे हैं कि विपक्षी दल खासतौर पर कांग्रेस पार्टी ये सब करा रही है। वह किसानों को भड़का रही है। बतौर रामपाल, केंद्र सरकार जितना मर्जी प्रयास कर ले, आंदोलन आगे बढ़ता रहेगा। कड़ाके की ठंड में भी किसानों की संख्या बढ़ना इस बात का गवाह है कि ये आंदोलन किसी के बहकावे में आकर नहीं किया जा रहा, बल्कि अन्नदाता खुद को जीवित रखने के लिए ऐसा आंदोलन करने को मजबूर हुआ है। हमें यह नहीं समझ आता कि केंद्र सरकार किस आधार पर तीनों कानूनों को जायज ठहरा रही है। जब इन कानूनों को लाने से पहले किसी किसान से बात ही नहीं की गई तो अब सरकार बातचीत का ढोंग क्यों कर रही है। उसे बिना किसी शर्त के तीनों कानूनों को रद्द करना होगा। अगर सरकार ने आंदोलन को बल प्रयोग के द्वारा खत्म कराने का प्रयास किया तो देश के हर गांव में किसान एवं दूसरे वर्ग सड़कों पर आ जाएंगे।
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