नई दिल्ली। इसरो जासूसी मामले में वैज्ञानिक नंबी नारायणन को अवैध रूप से गिरफ्तार किए जाने के मामले में एक उच्च स्तरीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। 27 साल पुराने जासूसी के इस मामले में सीबीआई ने नारायणन को क्लीन चिट दी थी, लेकिन केरल पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित किया था। 1994 का यह जासूसी कांड भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में चुनिन्दा गोपनीय दस्तावेज दो वैज्ञानिकों और मालदीव की दो महिलाओं सहित चार अन्य द्वारा दूसरे देशों को हस्तांतरित करने के आरोपों से संबंधित है। शुरू में इस मामले की जांच राज्य पुलिस ने की थी परंतु बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया गया था। सूत्रों ने बताया कि जासूसी मामले में इसरो के वैज्ञानिक डॉ. नारायणन को पुलिसकर्मियों द्वारा ‘जबरदस्त प्रताड़ना’ और ‘अथाह पीड़ा’ देने के मामले की तह तक जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर, 2018 को पूर्व न्यायाधीश डी के जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी, जबकि केरल सरकार को नारायणन को ‘अपमानित’ करने के लिए 50 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया था। वैज्ञानिक को तब गिरफ्तार किया गया था, जब कांग्रेस केरल में सरकार का नेतृत्व कर रही थी। जांच के बाद समिति ने हाल में एक सीलबंद लिफाफे में उच्चतम न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
नारायणन की गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिए केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने केरल में तत्कालीन शीर्ष पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया था। लगभग ढाई साल की अवधि में, न्यायमूर्ति जैन की अध्यक्षता वाली समिति ने गिरफ्तारी के लिए परिस्थितियों की जांच की। सीबीआई ने 79 वर्षीय पूर्व वैज्ञानिक को क्लीन चिट दी थी। वैज्ञानिक ने कहा था कि केरल पुलिस ने इस मामले को ‘अपने तरीके से गढ़ा’ था और 1994 के मामले में जिस तकनीक को चोरी करने और बेचने का उन पर आरोप लगाया गया था, वह उस समय अस्तित्व में ही नहीं थी।
नारायणन पहुंचे सुप्रीम कोर्ट-नारायणन ने केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक सिबी मैथ्यू और सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षकों के के जोशुआ और एस विजयन तथा तत्कालीन उपनिदेशक (खुफिया ब्यूरो) आर बी श्रीकुमार के खिलाफ ‘किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है।
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